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मेरा जीवन सुन्दर का ध्रवपद-गायन / रामइकबाल सिंह 'राकेश'
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मैं निखिल प्रकृति के स्वर-सप्तक का चारण,
करता उसके मकरन्द-रेण्ड का वितरण।
स्वर अग्निमन्त्र का मुझमें एक चिरन्तन,
देता जो विश्व-भुवन को दर्शन नूतन।
उद्दाम शक्ति का सागर मेरे भीतर
गति की जिज्ञासा व्यर्थ केन्द्र के बाहर।
आकाशदीप अन्तर का झंकृत जिस पर
गान्धार-ग्राम मेरी आत्मा का भास्वर।
मेरा जीवन सुन्दर का ध्रुवपद-गायन,
मेरे पल के पर में विराट का कम्पन।
निरपेक्ष सत्य ही चिन्त्यमान चिन्मय स्वन,
ध्वन्यर्थ उसी के अन्य सभी अभिव्यंजन।