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मेरा तो जो भी कदम है, वो तेरी राह में है / मजरूह सुल्तानपुरी

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मेरा तो जो भी कदम है, वो तेरी राह में हैं
के तू कहीं भी रहे तू मेरी निगाह में हैं

खरा हैं दर्द का रिश्ता तो फिर जुदाई क्या
जुदा तो होते हैं वो, खोट जिनकी चाह में हैं

छूपा हुआ सा मुझ हीं में, है तू कहीं ऐ दोस्त
मेरी हँसी में नहीं है, तो मेरी आह में हैं