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मेरा देश है ये / वीरेंद्र मिश्र

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लो अब गाता हूँ
कोई अंधकार की चादर मेरी ओर बढाए ना
जलता दीप है ये
इससे प्यार मुझको
कोई खुशहाली पर खूनी आँख उठाए ना
मेरा देश है ये
इससे प्यार मुझको

इसकी मिट्टी में है गर्मी काल की
इसमें ताकत है उठते भूचाल की
इतिहासों की गाथा इसके मूल में
एक चमकती दुनिया इसकी धूल में
इसके पवन झकोरों में वह प्यास है
सिर्फ़ बहारों को जिसका आभास है
संझा और सकारे ऐसे हैं कहाँ
सूरज चंदा औ' सितारे ऐसे हैं कहाँ
श्याम घटा बिजली बरखा मन भावनी
रिमझिम बूँद फुहार चंदनियाँ सावनी
आल्हा की हुंकार, रमायन की कथा
वृन्दावन के रास गोपियों की व्यथा
त्योहारों की धूम दिवाली के दीये
होली के रंगों बिन कोई क्या जीये
मणिपुरी के नृत्यों की चंचल परी
और भरतनाट्यम पर छिड़ती बाँसुरी
यह सब मेरी दुनिया की आवाज़ है
इसपर ही तो होता मुझको नाज़ है

लो अब गाता हूँ--
हँसती-गाती राहों में अंगार बिछाए ना
पथ की धूल है ये
इससे प्यार मुझको
कोई खुशहाली पर खूनी आँख उठाए ना
मेरा देश है ये
इससे प्यार मुझको

झूमर, हँसली, पायल. नुपुर रागिनी
काजल मेंहदी, मेंहदी, महावर, क्वारी चाँदनी
शुभ शगुनों के मंगल कलश दुआर पर
अनब्याहे दृग उठते वन्दनवार पर
और एक दिन घर से जाती लाडली
कुंकुम की डोली में चंपा की कली
देस कहीं परदेस कहीं किसकी लगन
किसकी ममता डोरी मन किसमें मगन
और एक दिन संघर्षों की राह पर
जाता है परिवार बिलखता आह पर
साथ चली श्मशान उमंगों पर कफ़न
प्यासे मनवा प्यासे ही हो गए दफ़न
लेकिन इसका अर्थ नहीं होता मरण
मुझको जाना है न किसी की भी शरण
हँसी उड़ाने वाले जाते भूल हैं
मेरे मरघट में भी खिलते फूल हैं
इन पैरों में अभी सफ़र की प्यास है
इन अधरों पर तो अब भी उल्लास है

लो अब गाता हूँ--
कोई मधुऋतु इस पतझड़ पर दानी हाथ उठाए ना
मेरा बाग़ है ये
इससे प्यार मुझको
कोई खुशहाली पर खूनी आँख उठाए ना
मेरा देश है ये
इससे प्यार मुझको