मेरा देश / आभा पूर्वे
रोज मेरे स्वप्न में
आजकल एक त्रिभुज उभर आता है
अब मैंने ठीक-ठीक इसे पहचान लिया है
यह त्रिभुज नहीं
मेरा देश है
कश्मीर को सर की तरह उठाये
आसाम और गुजरात को अपनी बांहें बनाये
अपने दोनों पांवों को जोड़े
मेरा ही देश है
हाँ, हाँ मेरा ही देश है
रोज कहता है मेरा देश
मुझसे मेरे स्वप्न में,
क्या तुम्हें मेरी आँखों में
आँसू दिखाई देते हैं ?
क्या मेरे सर पर
खून के छींटे दिखाई देते हैं ?
क्या मेरी हथेलियों पर
कीलों के दाग दिखते हैं ?
मैं कहती हूँ
हाँ देखती हूँ
लेकिन मेरे देश
तुम यह तो बताओ
किसने तुम्हें ईशु बनाया
किसने गांधी की तरह
तुम्हें गोलियाँ दागी हैं ?
देश कुछ नहीं बोलता
सिर्फ इसकी आँखें कुछ कहती हैं
क्या कहना चाहती हैं
कि मैनें ही इसे ईशु बनया है ?
मैंने इसे गांधी बनाया है ?
इनकार भी तो नहीं कर सकती हूँ
इतिहास मेरे ऐसे अपराधों का गवाह है
प्रायश्चित में मेरी आँखें बहने लगती हैं
तब मेरा देश मुझसे कहता है
तुम्हारे आँसू ही तो
मेरे जख्म धोने को
काफी नहीं हैं
आजकल मैं रोज स्वप्न में
अपने लहू से जन्मे
बन्धुओं को लेकर
द्वार-द्वार घूमा करता हूँ
एक महायज्ञ करना है मुझे
मैं देखती हूँ
अपने स्वप्न में
आजकल रोज हजारों हजार लोग
आते हैं मेरे पास
देश के पास
यह कहते हुए
संघं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि ।