मेरा पड़ोसी गौ-रक्षक है / नबीना दास / अनिल जनविजय
इन दिनों हर किसी का कोई न कोई गौ-रक्षक पड़ोसी है
पर हर कोई नहीं जानता कि वे कैसे दिखते हैं
हम कहते हैं — जनाब, दीवाली मुबारक हो, और आज का मौसम कैसा है
हम केक खाते हैं, मैडमजी मिलने पर शर्बत बनाती हैं।
मेरा एक ऐसा प्रेमी भी हो सकता है जो गौ-रक्षक हो
वह मुझे रात की हर अनहोनी से बचाए रखता है ।
हमारा गौ-रक्षक पड़ोसी ब्राण्डेड जींस पहनता है
वह चीन की बनी चीज़ों से नफ़रत करता है, लेकिन एक स्विस घड़ी पहनता है
मेरी पड़ोसन भी किटी पार्टियों को पसन्द करती है, जहाँ रामदेव का चूरन खाया जाता है
महिलाएँ पहनती हैं कोल्हापुरी चप्पलों के साथ ज़ारा ब्राण्ड का स्कार्फ, क्योंकि
आखिर, मुसलमानों में हुनर तो है, शिल्प और कला का
इस प्रकार मेरे गौ रक्षक मित्र अपने जीवन को प्रकाशित करते हैं।
जब हम मिलते हैं, हम कहते हैं जीवन बारिश की तरह सुखद है
जब मेरे ’इंशाल्लाह’ ने उनके कानों को धो डाला तो यह सुनकर वे स्तब्ध रह गए :
आप जेएनयू वाले लोग ऐसे ही हैं, नहीं ! — वे कहते हैं
थोड़े से अच्छे, थोड़े आवारा और थोड़े से बेमेल
फिर मैं भक्ति कविता सुनाता हूँ और अक्सर भक्तों को सुनाता हूँ ।
हमारे गौ रक्षक पड़ोसी दावे के साथ यह कहते हैं कि हिन्दू ख़तरे में हैं
आकाश केसरिया है, गऊ माता प्लास्टिक की थैलियों को दिव्य अन्न में बदल देती हैं
हमारी बातचीत का वितान भारतमाता की महानता तक ही फैला होता है
तब निर्वाण एक बंगाली मिठाई बन जाता है, जो पड़ोसी मुझे चाय के साथ खिलाता है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
My neighbour is a gau-rakshak
Nabina Das
Everyone has a gau rakshak neighbour these days
not everyone knows what they look like
we say happy Diwali sirji, and how’s the weather today
we eat cake, madamji makes sherbet when we meet.
I could even have a lover who’s a gau rakshak so tender
that he keeps me from all untowardness of nights.
Our gau rakshak neighbour wears branded jeans
he hates Chinese goods but flaunts a Swiss watch
she too likes kitty parties where Ramdev churan churns
Zara scarves with Kolhapuri sandals for the ladies, kyunki
after all, Musalmanon me hunar toh hai for craft and art
thus my gau rakshak friends make light of life.
When we meet we say pleasantries like the rain
until my inshallah waterlogs their ears, they seem stunned:
You JNU-wallahs are like that only no, they say
a little wanton, a little awaara, somewhat misfit
still I recite Bhakti poetry and often placate the bhakts.
Our gau rakshak neighbour asserts Hindu khatre mein hai
the sky is saffron, the cow mothers turn plastic bags to manna
Our conversations span all greatness of Bharat Mata Shri
then Nirvana becomes a Bengali mithai he offers me with tea.