Last modified on 13 नवम्बर 2022, at 21:46

मेरा मन तो मेरा मन है / गुलशन मधुर

जीवन जेठ दुपहरी जैसा, ध्यान तुम्हारा घन-सावन है
अपने मन की तुम जानो पर मेरा मन तो मेरा मन है

मन तो सीधी राह चला सब गंतव्यों की आस छोड़कर
किसे पता था पांव अचानक मुड़ जाएंगे किसी मोड पर
किसे बताते हमने कैसे कितने बीहड़ पार किए थे
अपना दर्द स्वयं से कहकर दिल के बोझ उतार लिए थे
तो फिर पलकों पर यह कैसा एक अबूझा भीगापन है
अपने मन की तुम जानो पर मेरा मन तो मेरा मन है

हां, मैं बीत चुका मौसम था, तुम झोंके थे ताज़ा रुत के
पर तुम भी थे राह-थके से, अपने भी थे दर्द बहुत से
निरायास उमगी उम्मीदों पर अब कुछ भी कहना कैसा
बिन न्यौते आ पहुंचे सपनों से भी भला उलहना कैसा
कितना ही कमउम्र रहा हो, सुंदर क्षण फिर सुंदर क्षण है
अपने मन की तुम जानो पर मेरा मन तो मेरा मन है

शायद मेरा गीत सुनो तुम या फिर मेरी बात टाल दो
चाहे मेरी बाट न जोहो या देहरी पर दिया बाल दो
शायद भीगें नयन तुम्हारे या तुम हंसकर नयन फेर लो
भूलो मुझे पलक भर में या मन में मेरी छवि उकेर लो
भूल न सकना लेकिन मेरे मन का अजब हठीलापन है
अपने मन की तुम जानो पर मेरा मन तो मेरा मन है