भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा रँग दे बसन्ती चोला / पीयूष मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माई...

मेरे चोले में तेरे माथे का पसीना है
और थोड़ी सी तेरे आँचल की बूँदें हैं
और थोड़ी सी है तेरे काँपते बूढ़े हाथों की गर्मी
और थोड़ा सा है तेरी आँखों की सुर्खी का शोला

इस शोले को जो देखा तो आज ये
लाल तेरा बोला अरे बोला --

मेरा रँग दे बसंती चोला, माई...