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मेरा हिस्सा / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
सांझ की नीरवता में
खामोशियों में
सिर्फ तुम्हारे साथ होने के अहसास भर से
चहक उठता हैं ये कौतुहल मन
तुम्हारे विचारों का स्पर्श
तुम्हारे ख्यालों का उत्कर्ष
हसरत भरी नजरों का आमंत्रण
तुम्हारी प्यार भरी नजरों का प्रण
सभी कुछ तो सिमटे हुए हैं
वक्त के पन्नों में
खामोशियों से अब हमें कोई शिकायत नहीं
तुम्हारी तस्वीर जो हमें साफ नजर आती हैं
तुम्हारे लिखें इन खतों में
तुमको पढ़ा हैं मैंने अनगिनत शामों में
तुमको देखा हैं इन पन्नो मैं रोज दर रोज
तुम्हारे इशारें
तुम्हारी मुस्कुराहटें
तुम्हारी पलकें
वो चमकती हुई आँखे
सभी कुछ तो जिया हैं
इन पन्नो में हर रोज
वो सब आज मेरा हिस्सा है