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मेरी-तुम्हारी-हमारी / ऋचा दीपक कर्पे

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मेरी कुछ कविताएँ
सिर्फ़ मेरे लिए होती हैं
और हाँ!
सिर्फ़ तुम्हारे लिए भी।

तुम्हारे साथ खिलने वाली
मेरी हर उस सुबह की तरह
और हर उस रात की भी तरह
जो तुम्हारे साथ ढ़लती है...

मैं लिख देती हूँ कुछ ऐसा
जिसे पढ़ते सब हैं
लेकिन समझते हो सिर्फ़ तुम

ऐसी कविताएँ,
जो सबके दिमाग पहुँचती हैं
लेकिन दिल तक पहुँचती है
सिर्फ तुम्हारे

मैं क्या लिखती हूँ
ये पता होता है सबको
लेकिन क्यूँ लिखती हूँ
ये जानते हो सिर्फ़ तुम

सब पढते हैं, सबके मुँह से
वाह! निकलता है
तुम पढ़ते हो और
तुम्हारे दिल से आह! निकलता है

मेरे लफ़्ज आवाज बनकर
सबके कानों तक पहुँचते हैं
लेकिन उन लफ़्ज़ों में
छिपे अहसास पहुँचते हैं
सिर्फ़ तुम तक...

क्योंकि,
मेरी कुछ कविताएँ
सिर्फ़ मेरे लिए होती हैं।
और हाँ!
सिर्फ़ तुम्हारे लिए भी