मेरी कविता की लड़की / हरप्रीत कौर
एक
मेरी कविता की लड़की से
कहना चाहता हूँ
तुम दुनिया की सबसे अच्छी लड़की हो
जैसे ही कहने को होता हूँ
वह कहती है
‘मेरी तो कुड़माई हो गई
जा किसी और को कविता में ला’
मैं उसे फिर से कहता हूँ
‘नहीं, नहीं कविता में आने से
किसी का कुछ नहीं खोता’
जैसे ही कहने को जाता हूँ
वह मेरी कविता से दूर चली जाती है
फिर बरसों-बरस वापिस नहीं आती है।
दो
उसे कहीं जाने की जल्दी है
अचानक मुझसे टकरा गई है
और एकदम हड़बड़ा गई है
मैंने उसकी कोई चोरी पकड़ ली
जिसे कविता में लिख कर
मैं सबको सुना दूँगा
सब जान जाएँगे
कि वह कहाँ गई थी
तीन
मेरे साथ
लंगड़ा शेर, पिच्चो, गीटे, टप्पा खेलोगे?
कह कर मेरे पीछे-पीछे दौड़ने लगती है
जैसे ही मैं जीतने लगता हूँ
वह मुझसे हारने लगती है
कहती है -
‘कविता में मुझे रोता देख कर
हारने लगते हो ना तुम’
‘खेल में तुमको जिता कर
हारना चाहती हूँ मैं
हमारे गाँव में मेहमानों को हराने का रिवाज नहीं
हारना ही है तो जा कहीं और जा कर खेल’
इतनी बड़ी बात कह कर
हँसने लगती है खिलखिला कर
मेरी कविता की लड़की
चार
नींद से उठ कर
बैठ गया हूँ
इतनी रात गए
कविता में लाना चाहता हूँ उसे
वह है कि अभी सब्जी काट रही है
फिर कपड़े तहाएगी
फिर जाने क्या-क्या करेगी
तब तक तो
सो ही जाऊँगा मैं
पाँच
कान में पाँचवा छेद करवा कर
कह रही है मुझे-
‘वह सामने देखो
मुरकियों वाला गाँव
सारी लड़कियों के कान में
पाँच-पाँच छेद हैं
हे वाहेगुरू
देखा है कोई गाँव कहीं लड़कियों के नाम से मशहूर
वहीं से छिदवाए हैं
छब्बी, अक्की, वींटा, राणो, सब ने
तुम्हें तो चिड़ी उड़ कौआ उड़ भी खेलना नहीं आता
भला तुम्हारे कहने से थोड़े उड़ने लगेंगी सारी चीजें
और हाँ
थोड़े ही आ जाऊँगी तुम्हारी कविता में मैं
‘ठीक वैसी की वैसी
जैसी कि मैं हूँ’
छः
खेत में लस्सी पहुँचाने
चली आई है तपती दोपहर
कोई है कि सुन ही नहीं रहा
कि उसके पास लस्सी है
जिससे बुझ सकती है प्यास
ट्यूबवेल की घर्रर-घर्रर में
किसे सुनती है उसकी आवाज
मैं हूँ कि चाहता हँ
वह लस्सी रख कर आ जाए वापिस
मेरी कविता में खाली हाथ ....
सात
मेरी कविता की
लड़की को
यह पता है
कि
मुझे सब पता है
मुझे भी यह पता है
कि
उसे सब पता है
पर
कविता से बाहर
हमें एक दूसरे के बारे में
कुछ भी नहीं पता है