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मेरी ख़राब कविताएं / राखी सिंह
Kavita Kosh से
जब भी कहीं मेरी प्रिय कविता की बात होती है
मुझे मेरी सबसे ख़राब कविताएँ याद आती हैं
वो जिनमे नहीं थी पसन्द पर खरे उतरने जितनी पात्रता
वो जिसमे नहीं था कोई आकर्षण
वो जिसे नकार दिया था सबने
वो मेरी छाती से चिपक बैठी
मेरी स्मृतियों में सदा प्रथम पायदान पर बनी रही
मैने बड़े दुलार से पोषित किया उन्हें
कि वह भी अन्य सराही गई रचनाओं की भांति निकली थी मेरी क्षमताओं के बूते से
उनका क्षीण होना, उनकी नही
मेरी क्षीणता थी
उन निर्दोष अभिव्यक्तियों की
दोषी मैं थी
जिस प्रकार माँ एक समान पालती है गर्भ में शिशु को
पर सभी नहीं होतीं एक समान
इसीलिए तो कई सन्तानो की माँ को
होता है विशेष स्नेह
सबसे दुर्बल, सबसे निर्धन
संतान से।