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मेरी चाहत का फ़क़ीरी से सिरा मिलता है / मुनव्वर राना
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मेरी चाहत का फ़क़ीरी से सिरा मिलता है
कोई नंबर भी मिलाता हूँ तेरा मिलता है
तुमने इन आँखों के बरसने से परेशाँ क्यों हो
ऐसे मौसम में तो हर पेड़ हरा मिलता है
एक दीया गाँव में हर रोज़ बुझाती है हवा
रोज़ फुटपाथ पर एक शख़्स मरा मिलता है
ऐ महब्बत तुझे किस ख़ाने में रक्खा जाए
शहर का शहर तो नफ़रत से भरा मिलता है
आपसे मिलके ये अहसास है बाक़ी कि अभी
इस सियासत<ref>राजनीति</ref>में भी इंसान खरा <ref>शुद्ध</ref>मिलता है
ये सियासत है तो फिर मुझको इजाज़त<ref>आज्ञा</ref>दी जाए
जो भी मिलता है यहाँ ख़्वाजा-सरा<ref>हिजड़ा</ref>मिलता है
शब्दार्थ
<references/>