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मेरी तक़दीर सँवर जाती उजालों की तरह / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी
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मेरी तक़दीर सँवर जाती उजालों की तरह
तुम मुझे चाहते गर चाहने वालों की तरह
तेरे ख़्वाबों में कभी मेरी गुज़र हो न सका
मैं ज़बूँ बख़्त रहा हिज्र के नालों की तरह
आरज़ू झूम उठी आस ने अँगड़ाई ली
तुमने जब देख लिया देखने वालों की तरह
ज़िन्दगी दूर से लगती थी सुहानी कितनी
पास आई तो ये लगती है वबालों की तरह
जाने क्या कहती है दुज़दीदा निगाही तेरी
अश्क आँखों में झलकते हैं सवालों की तरह
मंज़िले-शौक़ मेरे दिल का भरम रख लेना
मैं भटक जाता हूँ आवारा ख़यालों की तरह
मैं बहर तूर हूँ तख़्लीक़े-मुसलसल का जवाब
हल मुझे कीजिए पेचीदा सवालों की तरह
इक फ़क़त फूल नहीं ग़म का मदावा ऐ ‘चाँद’
ख़ार भी पालता हूँ पाँवों के छालों की तरह