भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी तस्वीर में रंग और किसी का तो नहीं / 'मुज़फ्फ़र' वारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी तस्वीर में रंग और किसी का तो नहीं
घेर लें मुझको सब आके मैं तमाशा तो नहीं

ज़िन्दगी तुझसे हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझको मगर इतना तो नहीं

रूह को दर्द मिला दर्द को आँखें न मिली
तुझको महसूस किया है तुझे देखा तो नहीं

सोचते सोचते दिल डूबने लगता है मेरा
ज़हन की तह में ' मुज़फ़्फ़र ' कोई दरिया तो नहीं