भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी नानी / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
कितनी अच्छी मेरी नानी,
रोज सुनाती मुझे कहानी।
सांझ-सवेरे भजन सुनाती
तुलसी और परसाद खिलाती।
आंखों पर ऐनक लगवाकर,
रामायण का पाठ सुनाती।
भाई लखन-भरत सा बनना,
यही सिखाती मेरी नानी।
कितनी अच्छी मेरी नानी।
कभी न कड़वा किसी से बोलो,
बोल बोल में मिश्री घोलो।
पहले सोचो, समझो, तोलो,
फिर अपनी जिह्मवा को खालो।
कौए-कोयल की वाणी का,
भेद बताती मेरी नानी।
कितनी अच्छी मेरी नानी।।
दुनियां के इस रंग मंच पर,
कड़वे-मीठे कई सपने है।
हंसी खुशी से घुल मिल जाओ,
प्यार करो तो सब अपने है।
बात-बात में रोज ज्ञान की,
बात बताती मेरी नानी।
कितनी अच्छी मेरी नानी।।