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मेरी नियति / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

असंख्य श्राप मेरा पीछा करते हैं
मैं अपनी नियति से भागता हूँ
भेस की तरह बदलता हूँ शहर
रहता हूँ
छुपने के अंदाज़ में
प्रेम की प्रतिक्रिया है विश्वास
जिन्होंने प्रेम किया मुझसे
तोड़ा उनका ही भरोसा मैंने
क्योंकि हर बार दाँव पर लगी थी
स्वाधीनता
स्वतन्त्रता
अ-सामाजिक विचार है
इसका पक्ष लेना याने बाग़ी होना
जब यह ख्याल आए
कि पैसों की दन-फन से ज़्यादा ज़रूरी है
शांति
तो जोख़िम की ख़ातिर
एक उठापटक
जीवन की अनिवार्यता
पर उस शांति में
सन्नाटा है
बहुत कुछ छूट जाने का पछतावा भी
और हर कदम पर
एक नई भूलभुलैया