मैं अपना बहुत कुछ
ख़ुद ही जानता, जानता
पचास का हो गया हूँ
अगर कोई और जान लेता
मैं कितना उसका वो मेरा
हो जाता
सोचता तो रहा
जानती होगी ज़रूर वह
साँवली सहपाठिन दलित लड़की
मेरे अन्दर के सौन्दर्य की
कितनी मालकिन है वह
जिसके दुपट्टे के छेद में से देखते हुए
मुझे अभी
उसका कुछ होना था
वह सारी की सारी छेद में से
मेरे अन्दर आ बैठी
पर वह जान न सकी ज़रा भी
और वह
सूक्ष्म शायरा साँवली
भी देख ना सकी
मेरे अन्दर
ईश्वर की भरी कटोरी
कहती
देवनीत, यह तेरी ईगो है
कि तेरे अन्दर की प्रेम-कटोरी कोई ख़ुद ही छुए
मैं उससे डर गया
कटोरी उठा एक तरफ़ रख दी
अब कटोरी वाली ख़ाली जगह
उसको श्राप दे रही है ।
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह