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मेरी बेटी / ओम पुरोहित ‘कागद’

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मैंने
किसी भी दिन
बढते नहीं देखा
अपनी बेटी को
फ़िर भी
आज वह
बीस की हो गई !

बातें करती है
स्कूल की नहीं
रोटी
कपड़ा और मकान की
बातों के बीच
बातें करती है
मेंहन्दी
बिन्दिया और गहनों की
प्रतिदिन के परचून की !

मुझे
आजकल
अपने नहीं
उसकी कपडों की
अनकथ चिन्ता रहती है
आज ज्ञात हुआ
बाप किसे कहते हैं

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"