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मेरी माँ / सूरजपाल चौहान

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भोर होने से पहले
सड़क पर
झाड़ू लगाती
मेरी माँ,
जैसे खरोंच रही हो
चुपचाप सीने को
फौलादी व्यवस्था को
अपने नाख़ूनों से ।

उस पार जाती
सड़क के वह,
सिर पर बजबजाती गन्दगी
की टोकरी रखे
जैसे-उठाया हुआ हो
उसने एक शव
मरी हुई व्यवस्था का ।