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मेरी मृत्यु लोकतन्त्र की हत्या मानी जाए / गुँजन श्रीवास्तव

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मेरी मृत्यु,
ग़र क़ानून की लाचारी की वजह से या
किसी गुण्डे की गोली से

न्याय के लिए भटकते कभी
अदालत के चक्कर लगाते

संसाधनों से युक्त इस देश में
एक रोटी की ख़ातिर

हो जाए या किसी अस्पताल की चौखट पर
रक़म न भर पाने की ख़ातिर हो

तब उसे तुम ‘मृत्यु’ मत कहना दोस्त !

अख़बार लिखें
या दें लोकतन्त्र के कुछ कीड़े गवाही
तब भी उसे तुम
हत्या ही कहना !

मेरे परिजनों से कहना कि मुझे
न लिटाएँ लकड़ियों की सेज पर

करवा लाना संविधान की कुछ प्रतिलिपियाँ
जिनपे मैं लेट सकूँ अपने मृत शरीर को लिए

और कहना मेरी आख़िरी इच्छा थी कि
“मेरी मृत्यु को
लोकतन्त्र की हत्या माना जाए”।