मेरी मेहबूबा का घर / एल्विन पैंग / सौरभ राय
ये मेरी मेहबूबा का घर है।
उसकी शटर आँखें, ये बन्द दरवाज़े उसके होंठ हैं।
ये रसोई जहाँ मैं बैठा हूँ
मेज़ की तरह शान्त, नाश्ते-सा ठण्डा
दावत-सा उतावला।
ये उसके अंग हैं, उसकी देह की ज़मीन में
गहरी दबी जड़ें, जिनके पार नहीं जा पा रहा हूँ मैं।
चाहे जितनी शिद्दत करूँ, उसके बग़ीचे जितना घना नहीं हो सकता
यही कैफ़ियत है मेरी, मेरी जानने-समझने की हदें,
मेरी भरोसे की सरहदें।
बाहरी दुनिया का फैलाव, रुकता है
मेरी खाल तक आकर। जिसके पार जाने के रास्ते कई हैं;
उसकी साँसों की नाज़ुक गरारी,
छुअन की हलकी सबर सीढ़ियाँ।
यही है, बस यही मेरी चाहतों का दायरा।
सोचता हूँ शायद उसकी चोटियाँ भी बनना चाहतीं हैं मेहराब,
पसर जाना चाहती हैं ज़मीन पर
किसी मुलायम ग़लीचे की तरह, मैं चाहता हूँ
घर लौटकर उसे देखना, परदे खोलना
चाहता हूँ, खिड़कियों से रात घर के अन्दर आए।
बस यही रास्ता है मेरी मेहबूबा तक पहुँचने का,
रग़ों से बहते हुए उसके दिल में उतर जाने का। इसी बाबत
आज रात मैं उसमें उतर रहा हूँ,
नींद की गहरी वादियों में बहता हुआ
पहुँच रहा हूँ उसकी दहलीज़ तक,
उसके कमरे की खिड़की पर रखे
रोशनदान को देखता हुआ।
मुझे मालूम है ये वही घर है,
और दरवाज़े मल्लाह हैं हमारे बीते हुए दिनों के
अगल-बगल रखे हुए, जहाँ हलकी-सी भनक
उसे खोल देती है, और छलक जाती है गर्म रौशनी,
आहिस्ता से।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय