भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी साँस / रोज़ा आउसलेण्डर
Kavita Kosh से
मेरे संजीदा सपनों में
रोती है ज़मीन
ख़ून के आँसू
पत्थर मुस्कुराते हैं
आँखों में मेरी
मनुष्यो ! आओ
अपने अनेक प्रश्नों के साथ
पास जाओ सुकरात के
मैं उत्तर देती हूँ :
अतीत ने कर दिया है बन्द मुझे
विरासत में पाया है
भविष्य को मैंने I
यही है अब
मेरी साँस II
मूल जर्मन भाषा से प्रतिभा उपाध्याय द्वारा अनूदित