भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी सूनी ज़िन्दगी में सुख कभी आया तो था / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी सूनी ज़िन्दगी में सुख कभी आया तो था ।
ख़्वाब उसने भी सुनहरा एक दिखलाया तो था ।

मैं था ऊँचे दरख़्तों से कितना बेहतर दोस्तों,
कम से कम नीचे मेरे ख़ुद का सही साया तो था ।

लाख था पर्वत के पहलू में कोई पत्थर का दिल,
दिल मगर बहती नदी पे उसका भी आया तो था ।

बारिशों में इस बरस गलियों में कब पानी बहा,
एक बच्चा नाव काग़ज़ की बना लाया तो था ।

आशियाँ उसको बनाने का हुनर आया नहीं,
चन्द तिनके प्यार के मैं छोड़ कर आया तो था ।

बन गए कैसे हिमालय देखिए ज्वालामुखी,
आपने तो एक शोला यूँ ही भडकाया तो था ।