मेरी   ही   धूप  के  टुकड़े  चुरा  के  लाता  है 
मेरा    ही    चाँद  मुझे  कहकशाँ  दिखाता  है 
ये  किसकी प्यास से दरिया का दिल है ख़ौफज़दा 
हवा   भी    पास  से  ग़ुज़रे  तो  थरथराता  है
बदन  की  प्यास  वो  शै  है कि कोई सूरज भी
सियाह   झील   की   बाँहों  में  डूब  जाता  है
अना    के   दार   पे  इक  शाहराह  खुलती है
जिसे   कि    बस  कोई  मंसूर  देख  पाता  है 
बदनफरोश   हो   गये   हैं   रूह   के   रहबर 
ये  वक्त  देखिये  अब  और  क्या  दिखाता   है 
कोई     हक़ीर   भटकता   है   शाहराहों   पर 
अना   का   दश्त   मुझे   रास्ता  दिखाता  है