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मेरे अंतर की शक्ति बनो / राहुल शिवाय

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तुम गीत नहीं, मेरे अंतर की शक्ति बनो

तुम युग के आँसू को लोचन में आज भरो
तुम लिखो भाव लघु संग वृहत हर जीवन का
युग की पीड़ा अभिव्यक्त करो, तुम सरस बहो
तुम शक्ति बनो हारे जन औ’ पीड़ित मन का
तुम भाव-मुखर, जन, मन, जीवन-अभिव्यक्ति बनो

तुमको केवल महिमा का गान नहीं करना
मत उपवन-उपवन घूम-घूम गुंजार करो
तुम भावुकता की सीमाओं से आज निकल
सागर के जैसे लहरों का विस्तार करो
तुम पीर भरी निश्छल उर की अनुरक्ति बनो

फूलों पर मंडराने वाले मधुकर ढेरों
फूलों को वे संताप सदा ही देते हैं
काटों ने फूलों का हर पल है साथ दिया
पर बदले में फूलों से कुछ क्या लेते हैं
रह मंदिर के बाहर मन-मन की भक्ति बनो

रचनाकाल-24 अगस्त 2015