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मेरे अधिकारों के विषय में कविता / जून जॉर्डन / अनुराधा सिंह

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आज रात मुझे फिर टहलना पड़ेगा
और अधिक स्पष्ट करने पड़ेंगे अपने विचार
इस कविता के विषय में
कि मैं क्यों किसी शाम
बिना अपने कपड़े-जूते
लैंगिक पहचान, उम्र, स्त्री होने की हैसियत
या अंग-विन्यास बदले
घर से बाहर अकेली नहीं जा सकती
एक सड़क पर बिलकुल अकेली / बगैर एक मुद्दा बने

मुद्दा कि मैं वह सब नहीं कर सकती
जो करना चाहती हूँ अपनी ही देह के साथ
महज इसलिए कि मैं एक ग़लत लिंग भेद,
ग़लत उम्र, ग़लत त्वचा हूँ

और यह दीगर बात है कि
मैं शहर से बाहर
किसी निर्जन तट पर जाकर
ईश्वर / बच्चों / संसार
या इन सबको एक साथ
अपनी या नक्षत्रों की मौन भाषा में
उद्घाटित करना चाहूँ
क्योंकि मैं नहीं कर सकती
मैं वहाँ अकेली नहीं जा सकती
जाकर रुक नहीं सकती
रुककर सोच नहीं सकती
जबकि होना चाहती हूँ एकाकी

क्यों मैं अपनी ही देह के साथ
वह सब नहीं कर सकती
जो करना चाहती हूँ

आख़िर कौन बनाता है हमारे लिए ये नियम
फ़्राँस का कानून कहता है कि यदि कोई पुरुष
जबरन मुझमें प्रवेश करे
लेकिन स्खलित नहीं हो तो मेरा बलात्कार नहीं हुआ
बावजूद मेरे छुरा घोंप देने जैसे हिंसक प्रतिरोध के
बावजूद मेरे हृदय-विदारक आर्तनाद के
बावजूद उस दोगले इनसान से की गई चिरौरियों के
बावजूद उसके सिर पर हथौड़ा मार देने जैसे संघर्ष के

इन सबके बावजूद
यदि वह और उसके साथी मेरा शील भंग करते हैं
तो यह बलात्कार नहीं मेरी सहमति है
क्योंकि अंततः हम समझे हैं
यह बलात्कार हुआ ही इसलिए था
कि मैं ग़लत थी
गलत थी कि मैं 'मैं' थी
वहाँ होकर ग़लत थी जहाँ मेरा होना ही ग़लत था

यह ऐसा है जैसे दक्षिण अफ्रीका
नामीबिया में घुसे
नामीबिया अंगोला में घुसे
तो कैसे जानोगे कि प्रेटोरिया स्खलित हुआ
अश्वेत भूमि पर राक्षसी जैकबूट के
स्खलन के साक्ष्य क्या हैं भला
और यदि नामीबिया के बाद अंगोला उसके बाद जिम्बाब्वे
उसके बाद मेरे सारे अपने लोग
अपने गाँवों की आहुति देने की हद तक प्रतिरोध करें
फिर भी हार जाएँ
क्या तब भी शक्तिशाली राष्ट्र यही दावा करेंगे
कि इसमें हमारी सहमति थी

आप समझ रहे हैं न मेरी बात : हम ग़लत त्वचा के
ग़लत प्रायद्वीप में रहते ग़लत लोग हैं
दुनिया किस उदारता की बात कर रही है भला
इस सप्ताह के 'टाइम्स' के अनुसार
यह एक समस्या है

और यह समस्या है यह बहुत पहले
१९६६ में सीआइए ने तय कर लिया था
और यह समस्या एनक्रूमाह नामक व्यक्ति था
इसलिए उन्होंने उसे मार दिया और
उससे पहले पैट्रिस लुमुम्बा था
और उससे भी पहले थे
आइवी स्कूल के कैम्पस में मेरे पिता
जो स्कूल के कैफ़ेटेरिया में प्रवेश करने से डरते थे
कहते थे कि वे ग़लत हैं, ग़लत आयु, ग़लत चमड़ी
गलत लिंग पहचान
वे मेरी फ़ीस भर रहे थे

और उसके पहले
मेरे पिता कह रहे थे कि मैं ग़लत हूँ
मुझे एक बेटा होना चाहिए था वे एक लड़का चाहते थे
मुझे गोरी रंगत का होना चाहिए था
मेरे बाल सीधे चिकने होने चाहिए थे
और मुझे इतनी सिरफिरी नहीं एक लड़का होना चाहिए था

और उससे पहले मेरी माँ
मेरी नाक के लिए प्लास्टिक सर्जरी
और दाँतों के लिए ब्रेसेज का आग्रह कर रही थीं
पुस्तकों को आज़ाद छोड़ देने को कह रही थीं
दरअसल वे चाहती थीं कि मैं पढ़ना छोड़ दूँ
मैं सीआइए की समस्याओं से भली भाँति वाकिफ़ हूँ
दक्षिण अफ़्रीका की समस्याओं से भी
एक्सॉन कारपोरेशन की समस्याओं से
श्वेत अमरीका की आम समस्याओं से
शिक्षकों, उपदेशकों, एफ़बीआई,
सामाजिक कार्यकर्ताओं और खासतौर पर मेरे माता पिता की समस्याओं से /
मैं परिचित हूँ इन समस्याओं से क्योंकि
अन्ततः मैं ही हूँ वे समस्याएँ

मैं बलात्कार का इतिहास हूँ
अपने अस्तित्व के तिरस्कार का इतिहास हूँ
स्वयं के आतंकित बन्दीकरण का इतिहास हूँ
अपने मन, देह और आत्मा पर अपने ही अधिकार के विरुद्ध
अनगिनत हमलों और असीमित सैन्यशक्ति का इतिहास हूँ

और भले ही यह रात को बाहर घूमने
मेरे द्वारा अनुभूत प्रेम
या योनि की शुचिता का प्रश्न हो
या प्रश्न हो मेरी राष्ट्रीय सीमाओं की शुचिता का
मेरे नेताओं की शुचिता का
मेरी एक एक कामना और इच्छा की शुचिता का

मैं अपने निजी, विशेष संरचना वाले निर्विवादित रूप से एकाकी,
एकलौते हृदय में यह जानती हूँ
कि मेरा बलात्कार हो चुका है
क्योंकि मैं हमेशा ग़लत रही हूँ
ग़लत लिंग, ग़लत आयु, ग़लत त्वचा, ग़लत नाक, ग़लत बाल, ग़लत ज़रूरतें,
ग़लत सपने, ग़लत भौगोलिक पहचान, ग़लत पहनावा

मैं बलात्कार का पर्याय हूँ
मैं वह समस्या हूँ जिसे हर कोई
बलपूर्वक घुस कर
मिटा देना चाहता है

वीर्य के साक्ष्य का होना न होना मायने नहीं रखता
आज यह बात साफ़ हो जानी चाहिए
कि यह कविता मेरी सहमति नहीं, मैं सहमत नहीं
अपनी माँ-पिता शिक्षकों से
एफ़बीआई से दक्षिण अफ्रीका से बेडफ़ोर्ड स्टाय से
पार्क एवेन्यू से, अमरीकी एयरलाइन्स से
कोनों में खड़े कामुक शोहदों से,
कार में बैठे नीच ढोंगियों से

मैं ग़लत नहीं
ग़लत होना मेरा नाम नहीं
मेरा अपना नाम ही मेरा नाम मेरा नाम मेरा नाम है
और मुझे नहीं मालूम कि किसने हमारे लिए चीज़ों को ऐसा बना दिया लेकिन
मैं इतना बता सकती हूँ कि अबसे मेरे प्रतिरोधों,
मेरे सरल, दैनिक और रात्रिक आत्मनिर्णयों
से तुम्हारी जान भी जा सकती है

कविता 'पोएम अबाउट माय राइट्स' का मूल अँग्रेजी से अनुवाद : अनुराधा सिंह