भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे आंगन में है रूई / ठाकुरप्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
मेरे आंगन में है रुई
रूई का सूत
उत्तर से आंधी
है दक्षिण से पानी
मुझको है दिए की
बाती बनानी
ख़बरदार रे
आंधी-पानी के पूत