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मेरे इक सिर गोपाल और नहीं कांउ भाई / सहजोबाई

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सहजो ने निर्गुण और सगुण का समंजस्य भी उपस्थित किया है। उनकी दृष्टि में श्रीकृष्ण का रूप ऐसा ही है। वे कहती हैंः-

 (1)

मेरे इक सिर गोपाल और नहीं कांउ भाई.
आइ बैस हिये मांहिं और दूजा ध्यान नाहिं,
मेरे तो सर्बस उन और हिताई बोई॥
जाति हू की कान तजा, लोक हू की लाज भजी,
दोनों कुल माहिं बनी, कहा करै सोई॥
उघरी है प्रीति मेरा, निहचै हुई वाकी चेरा,
पहिरि हिये प्रेम बेरा, टूटै नहिं जोई॥
मैं जो चरनदास भइ, गति सति सब खोइ दई,
 'सहजो' बाई नहीं रही, उठि गई दोई.