भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे उड़ान भरने के दूसरे साल / बैर्तोल्त ब्रेष्त / सुरेश सलिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे उड़ान भरने के दूसरे साल
मैंने पढ़ा एक अख़बार में
एक विदेशी ज़बान में
कि मैंने खो दी है अपनी नागरिकता ।

मैं न दुखी हुआ, न ख़ुश
पढ़ा जब अपना नाम
दूसरे बहुत सारे नेक और बद नामों के बीच ।

बदतर नहीं लगी मुझे
पलायन करने वालों की दुर्गति
जो वहीं बने रहे उनकी दुर्गति से ।

1935

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल