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मेरे और मोहन के दरम्यान होकर / बिन्दु जी

मेरे और मोहन के दरम्यान होकर
बसा है अजब इश्क़ मेहमान होकर।
मज़ा दर्द का लूटता है हमेशा,
इधर ज़िस्म होकर उधर ज्ञान होकर॥
उबलता है दोनों तरफ जोश-ए-उल्फ़त।
इधर शोक होकर उधर शान होकर।
निकलते हैं दोनों की आँखों के अरमां।
इधर ‘बिन्दु’ होकर उधर बान होकर॥