मेरे ख़याल-सा है, मेरे ख़्वाब जैसा है 
तुम्हारा हुस्न महकते गुलाब जैसा है 
मैं बंद आंखों से पढ़ता हूं रोज़ वो चेहरा
जो शायरी की सुहानी किताब जैसा है 
नहीं है कोई ख़रीदार अपना दुनिया में 
हमारा हाल भी उर्दू किताब जैसा है 
ये जिस्मो-जां के घरौंदे बिगड़ने वाले हैं 
वुजूद सब का यहां इक हबाब जैसा है 
वो रोज़ प्यार से कहते हैं हम को दीवाना 
ये लफ्ज़ अपने लिए इक ख़िताब जैसा है 
ये पाक साफ़ भी है, और है मुक़द्दस भी 
हमारा दिल भी तो गंगा के आब जैसा है 
जो लोग रखते हैं दिल में कदूरतें अपने 
उन्हें न मिलना भी कारे-सवाब जैसा है 
तुम्हें जो सोचें तो होता है कैफ़-सा तारी 
तुम्हारा ज़िक्र भी जामे-शराब जैसा है 
किये हैं काम बहुत ज़िंदगी ने लाफ़ानी
सफ़र हयात का गो इक हबाब जैसा है 
खड़े हैं कच्चा घड़ा ले के हाथ में हम भी 
नदी का ज़ोर भी 'रहबर` चिनाब जैसा है