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मेरे जाने का वक़्त हुआ जाता है / सुन्दरचन्द ठाकुर

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मेरे जाने का वक़्त हुआ जाता है

मैं खुश हूं कि कोई दुश्मन नहीं मेरा

मुझ नाकारा के पास हैं उदार माता-पिता

इस उम्र में भी पालते-पोसते मुझे

मेरी चिन्ता में ख़ाक होते हुए


वे मर चुके होते तो

ज़िन्दगी कुछ आसान होती.