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मेरे देश का भविष्य / गुण्टूरु शेषेन्द्र शर्मा / टी० महादेव राव
Kavita Kosh से
सभाएँ हो रही हैं
झण्डे उड़ रहे हैं
पीड़ितों की कतारों में खड़ी
ज़िन्दगियाँ चल रही हैं।
मेरे देश का भविष्य
मज़दूर भेड़ों की तरह चर रहे हैं
समानता को
बदल दिया गया है
दोपहर के मैदानों में
पुराने स्वप्न की तरह
कवियों
और शब्दों को
दीमक लग चुकी है
इस देश में
ऋषिवर पड़े हुए हैं
पुस्तकें बनकर
ग्रन्थालयों में।
मूल तेलुगु से अनुवाद : टी० महादेव राव