भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे नदीम / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
ख्यालो-शे'र की दुनिया में जान थी जिनसे
फ़ज़ा-ए-फ़िक्रो-अमल अरग़वान थी जिनसे
वो जिनके नूर से शादाब थे महो-अंजुम
जुनूने-इश्क की हिम्मत जवान थी जिनसे
वो आरज़ूएं कहां सो गयी हैं, मेरे नदीम
वो ना-सुबूर निगाहें, वो मुंतज़िर राहें
वो पासे-ज़ब्त से दिल में दबी हुयी आहें
वो इंतज़ार की रातें, तवील, तीर:-ओ-तार
वो नीम ख्वाब शबिशतां, वो मख़मली बांहें
कहानियां थीं कहां खो गयी हैं, मेरे नदीम
मचल रहा है रगे-ज़िन्दगी में ख़ूने-बहार
उलझ रहे हैं पुराने ग़मों से रूह के तार
चलो कि चलके चिराग़ां करें दयारे-हबीब
हैं इंतज़ार में अगली मुहब्बतों के मज़ार
मुहब्बतें जो फ़ना हो गयी हैं, मेरे नदीम