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मेरे पिता - एक वट वृक्ष / जितेन्द्र सोनी


श्रम स्वेद में रचे - बसे
मेरे पिता
मेरे लिए हैं
एक मजबूत ढाल
जो बचाती है मुझे
दुष्प्रहारों से
एक अथक सहारा
जो थामे रखता है
मेरा हाथ
हर चुनौती से जूझते वक्त
एक सपना
जो चेताता है मुझे
अपना सर्वस्व झोंकने को
ताकि में सच कर दूं उनकी उम्मीदें
मेरे पिता
नारियल की मानिंद
बाहर से कठोर
भीतर से मुलायम
बसते हैं
मेरे खून में
मेरी आँखों में
मेरे विचारों में
सच है
मैं हर बार लड़ता हूँ
बनता हूँ, जूझता हूँ
अपने पिता की तरह वटवृक्ष बनने को
जिसकी छत्रछाया में
साकार होते हैं
मेरे जैसे सपने !