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मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई / मेहर सिंह

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बिस्तर बांध कै चाल पड़्या जब याद हाजरी आई
मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई।टेक

दो दिन रहैगे छुट्टी के मेरा घी पीपी म्हं घाल्या
छोटे भाई नैं ठाया बिस्तर मेरै आगै चाल्या
कुए पै मेरी बहू फेटगी सांस सबर का घाल्या
दरवाजे म्हं खड़े पिता जी मैं उनकी कान्हीं चाल्या
हालत देख कै वे न्यूं बोले हमनै चाहती नहीं कमाई।

टेशन उपर पहोंच गया सुसराड़ पड़ै थी जड़ म्हं
क्लाक रूम म्हं धर्या बिस्तरा पहोंचा बीच बगड़ म्हं
छोटी साली न्यूं बोलै जणू कोयल बोलै झड़ म्हं
आ जीता तूं बैठ पिलंग पै मैं बैठूं तेरी जड़ म्हं
घणे दिनां मैं आया जीजा के भूल गया था राही।

जब रोटियां का टेम हुअया आई बलावण साली
आलू टमाटर घी बूरा की ठाडी भारदी थाली
धोरै बैठ जिमावण लागी तिरछें घूंघट आली
मुंह बटुआ सा गोल गोल था होठां पर थी लाली
उस गोरी के संग मैं छोर्यो साबत रात बिताई।

जब चालण का टेम हूअया वा बोली साली आण
तू तो जीजा चाल पड़े म्हारी रोती छोड़ी बहाण
जाणा पड़ै जरूरी हमनैम्हारा करडा सै लदाण
जै नहीं आता यकीन तेरै तैं चाल गेल पाटज्या जाण
मेहरसिंह पहोंच गया पलटन म्हं जाते ए ड्यूटी लाई।