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मेरे बारे मेँ अपनी सोच को थोड़ा बदलकर देख / सिराज फ़ैसल ख़ान

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मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदलकर देख ।
मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकलकर देख ।

शराफ़त से मुझे नफ़रत है ये जीने नहीं देती,
कि तुझको तोड़ लेंगे लोग तू फूलों सा खिलकर देख ।

ज़रुरी तो नहीं जो दिख रहा है सच मेँ वैसा हो
ज़मीं को जानना है ग़र तो बारिश में फिसलकर देख ।

पता लग जाएगा अपने ही सब बदनाम करते हैं ।
कभी ऊँचाइयोँ पर तू भी अपना नाम लिखकर देख ।

अगर मैँ कह नहीं पाया तो क्या चाहा नहीं तुझको
मोहब्बत की सनद चाहे तो मेरे घर पे चलकर देख ।

तुझे ही सब ज़माने में बुरा कहते हैँ क्यों 'फ़ैसल'
बिखर जाएगा यूँ ना सोच दीवाने संभलकर देख ।