भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे मन में ग़म का ही आवास होगा / पवनेन्द्र पवन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे मन में ग़म का ही आवास होगा
दिखाने को चेहरे पे उल्लास होगा

सहरा में प्यासो ! फ़क़त रेत होगी
बहुत दूर तक जल का आभास होगा

उसे दुख धरा का सुनाना पहाड़ो !
कि अम्बर तुम्हारे बहुत पास होगा

गिरों को उठाने की बातें बातें न करना
न हमसे सहन और उपहास होगा

बड़े घर के हर एक 'अर्जुन' के पीछे
किसी 'एकलव्य' का इतिहास होगा

वो मेहनतकशों की ही बातें करेगा
‘पवन’की ग़ज़ल में न कुछ ख़ास होगा .