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मेरे महबूब / अभिमन्यु अनत
Kavita Kosh से
इस शहर में
हवा ज़हर लिये होती है
उम्मीदें टूटती हैं
विधवा की चूड़ियों की तरह
इस शहर में
गर्भपात लिये बहती है नहर
चुनाव बाद की घड़ियों की तरह
वायदे भुलाए जाते हैं ।