निराले कितने रे सब तारों से
मेरे ये दो नयन सितारे!
जब नभ्र के ये असंख्य तारागण
अन्धकार ही में कर जगमग-जगमग
इठलाकर बल खाकर
होकर उच्छृंखल चचंल
पल-पल करते झिलमिल-झिलमिल!
जब चन्द्र- विहग
ज्योति-रश्मियों के पंख पसार
विहँस- विहँसकर अनन्त में
प्रमुदित हो करता विचरण!
तब ये तृषित आकुल नयन
निर्झर-से झरझर
ज्योतिहीन
व्याकुल हो अकुलाकर
रोदन करते हैं प्रतिपल!
जब स्निग्ध ज्योतिर्मय
शशि- विहग
ऊषा की लाली को लखकर
लज्जित हो
स्मित ज्योत्सना के पर समेट
हो जाता अति दीन मलिन
प्रकाश हीन!
तब मुरझाये से व्याकुल
ज्योतिहीन मेरे नयन
ऊषा का कर दर्शन
खिल- खिल उठते
करते झिलमिल
चमक- चमक हो जाते चंचल!
जबकि आकर्षक सुभग सुन्दर
उसकी अरूणिम परछाँई पाकर
न जाने कहाँ किधर शून्य में हो जाते विलीन
हो द्रुत ज्योतिहीन
गगन के विहँसते तारागण सारे!
निराले कितने रे सब तारों से
मेरे ये दो नयन सितारे!