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मेरे वजूद में बन के दीया वो जलता रहा / चाँद शुक्ला हादियाबादी

मेरे वजूद में बनके दिया वो जलता रहा
वो इक ख़याल था रोशन ज़हन में पलता रहा

बस गई काले गुलाबों की वो खुशबू रूह में
हसीन याद का संदल था और महकता रहा

वो धूप छाँव गरमी सरदी ना पुरवाई
बे एतबार-सा मौसम था और बदलता रहा

मैं जिनको डूबते छोड़ आया था मँझधारों में
उन्हीं की याद में मैं उम्रभर तड़पता रहा

वस्ल की रात थी सरग़ोशियों का आलम था
जो टूटा ख़्वाब तो मैं रात भर सुबकता रहा