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मेरे सच सपनीले (कविता) / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'

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हैं मेरे सफ़ेद काले भी रँगीले
हैं रंग मेरे सादे भी चमकीले
कभी सूरज बर्फ सा पिघलता है
कहीं चाँद ये आग उगलता है
कभी दिन खाली-खाली लगता है
कभी रात को मेला लगता है
न हरे न लाल न नीले पीले
हैं यार मेरे सच सपनीले।


मैं सोचता हूँ कुछ कर लूँगा
तसवीरों में रंग भर लूँगा
वो सब कुछ पहले से जानता है
खुद को खुदा वो मानता है
जो चाहकर भी सोच नहीं सकता
ऐसे रंग जीवन में वो घोलता है
न हरे न लाल न नीले पीले
हैं यार मेरे सच सपनीले।