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मेरे सतरंगे सपने / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
मैं खोई हुई चीज़ों की तलाश में निकला था
सरसों के फूलों से छिपे खेतों ने चुराए थे
बचपन के कुछ पीले सपने
मैंने पहली बार जाना कि पीलापन
सिर्फ़ बीमार चेहरों का रंग ही नहीं होता
पीलापन इंद्रधनुष का भी हो सकता है
और फूलों का भी
जलकुंभी से लदे पोखर ने चुराए थे
बचपन के कुछ हरे सपने
हमने बार-बार डुबकी लगाकर पानी के भीतर
जलपरी की तलाश की थी
उस सुरंग की तलाश की थी
जो जाती थी सोने-चांदी के देश में
मैंने नीले आकाश और धुंध की सफेदी के बीच
नीले और सफेद सपनों की तलाश की
मेरे सतरंगे सपने
गाँव से लेकर शहर तक
बिखरे हुए थे और मुझसे आँखें मिलाकर
पूछ रहे थे -
टूटने का कोई दर्द भी होता है ?