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मेरे साथ चल रहे हैं ग़मे ज़िन्दगी के साये / सिया सचदेव
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मेरे साथ चल रहे हैं ग़मे ज़िन्दगी के साये
कभी मैं जो मुस्कुराऊ उन्हें रास ही ना आये
यह तेरी है कैसी चाहत कभी हम समझ ना पाए
के हमीं पे सारी तोहमत और हमीं से दिल लगाये
मैं बला से मिट भी जाऊं रहे वोह सदा सलामत
मेरा घर जले तो ऐसे के ना उस पे आंच आये
मुझे ग़म है और वोह खुश है मुझे इसकी भी ख़ुशी है
मैं बहाऊं यूं ही आंसू मेरा यार मुस्कुराये
मुझे एतबार तुझ पर मगर इतना तो बता दे
जो किये थे तूने वादे कभी आज तक निभाए?
रही उम्र भर सिया मैं इस उम्मीद के सहारे
वो मेरे दिल को समझे कभी साथ तो निभाए