मेरे हिन्द की संतान / महेन्द्र भटनागर
मेरे हिन्द की संतान !
तेरे नेत्रा हों द्युतिमान
तेरे मुक्त, बल से युक्त,
विद्युत से चरण गतिमान !
मेरे हिन्द की संतान !
भूखी नग्न शोषित त्रास्त
तेरी भग्न जर्जर देह नत
प्राचीनता के
डगमगाते जीर्ण चरणों पर,
कि हालत आज है बेहद बुरी
मानो कसाई की छुरी से चोट खा
बेचैन हो चिल्ला उठा बकरा,
दमित यह सर्वहारा वर्ग
कितना रे गया गुज़रा !
करोड़ों मूक श्रमजीवी
उठो,
प्रतिशोध लो नूतन सबेरे में,
तुम्हारे देश के
उन्मुक्त विस्तृत वायुमंडल में
नयी किरणें
लगीं गिरने !
कि मुट्ठी बाँध कर गाओ
नया स्वाधीनता का गान !
मेरे हिन्द की संतान !
हर सोया हुआ इन्सान
करवट ले उठा,
जागा,
कि जिसको आततायी देख
उलटे पैर ले भागा,
जगे हैं सिंह निद्रा से !
मिटा पापी अँधेरा अब।
‘ठहर जा ओ अरे हिंसक !
कुचलता हूँ
अभी मैं शीश यह तेरा,
कि बस अब डाल दो घेरा !’
सभी ने यों पुकारा है !
करोड़ों के चरण फौलाद-से
अन्याय की चट्टान से जूझे,
किसी को आज क्या सूझे ?
असत् सत् का
चमक तम का
हुआ अभियान !
खड़ी हो जा
गठीली स्वस्थ फैली मुक्त छाती तान !
मेरे हिन्द की संतान !