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मेरो गोपाल री! मोहिं लागत है अति नीको / स्वामी सनातनदेव
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राग विलावल, ताल धमार 17.7.1974
मेरो गोपाल री! मोंिह लागत है अति नीको।
व्रज वन मण्डन, जन-मन-रंजन, राजत री! गोपन को टीको॥
स्याम-सलौनो, जसुमति-छौनो, लागत री! जीवन मो जीको।
तन मन-मोहन, तुलित सोहन, सोहत री! मोहन मो हीको॥1॥
मुनि-मनहारी, रति-रसकारी, वादत<ref>बजाता है</ref> री! कलरव मुरली को।
रास विहारी, नर्तनकारी, नासत री! मद रति के पीको॥2॥
कालिय-मर्दन, केशि निषूदन, मोहत री! मन व्रज-जुवती को।
मो मनमोहन, जन जीवन धन, जानत री! सब कछु जन-जीको॥3॥
शब्दार्थ
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