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मैंने छोड़ने पर सोचा है / रुस्तम
Kavita Kosh से
मैंने छोड़ने पर सोचा है।
वह भी दुख ही है जो इस जगत् में हमें मिला है।
जिसे छोड़ दिया जाता है वह चला जाता है।
छूना शरीर ही में सम्भव है।
नहीं छूना, छू नहीं पाना, हमारी मृत्यु का कुछ और पास
आना है।
और जो आत्मा है हमारे शरीर ही में है।
हम इस जगत् के ही प्राणी हैं।
सुख, दुख हमें सहना ही है।