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मैंने दिल का प्रश्न किया तो / कमलेश द्विवेदी

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मैंने दिल का प्रश्न किया तो उसने उसे गणित का माना।
और फटाफट शुरू कर दिया उसी तरह से जोड़-घटाना।

मैंने पूछा-क्या होता जब
दो से दो टकराती आँखें।
वो बोला-दो से दो जुड़कर
सिर्फ़ चार हो जाती आँखें।
ऐसे में कितना मुश्किल है आँखों-आँखों प्यार जताना।
मैंने दिल का प्रश्न किया तो उसने उसे गणित का माना।

मैंने पूछा-दो दिल मिलकर
कब हो जाते एक बताओ.
वो बोला-मिलकर दो होंगे
तुम न व्यर्थ में एक घटाओ.
ऐसे में कितना मुश्किल है उससे दिल की बात बताना।
मैंने दिल का प्रश्न किया तो उसने उसे गणित का माना।

प्रश्न प्यार में डूबा हो तो
उत्तर प्यार भरा जँचता है।
जोड़-घटाना-गुणा-भाग में
कुछ भी शेष नहीं बचता है।
ये सब उसे पता है फिर भी मुझे चिढ़ाता मीत सयाना।
मैंने दिल का प्रश्न किया तो उसने उसे गणित का माना।