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मैंने देखा चिड़ियाघर / नागेश पांडेय 'संजय'

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सुनो दोस्तों! पापा के संग
मैंने देखा चिड़ियाघर!
धम्मक-धम्मक हाथी देखा,
देखा घोड़ा सरपट।
देखा अजगर खूब बड़ा सा
बदल रहा था करवट।
आगे शेर बबर देखा तो
काँप उठे सब थर-थर-थर।
देखा एक जिराफ मजे से
हरी पत्तियां खाता,
मगरमच्छ था पड़ा हुआ
नकली आँसू ढुलकाता।
घोड़े जैसा लगा जेब्रा
खूब धारियां थीं उस पर।
हिरण कुलांचे भरता देखा
और मोर उड़ता था।
भारी-भरकम गेंडा देखा,
इधर-उधर मुड़ता था।
कंगारू के क्या कहने जी।
भारी देह, जरा सा सर
रंग बिरंगी चिड़ियां देखीं,
देखे हरियल तोते।
उछल रहे खरगोश, मछलियां
लगा रही थीं गोते।
देख तेंदुए को घबड़ाए,
घूर रहा था वह कसकर।
बाघ, भेड़िये और लोमड़ी
देख - देख हर्षाए,
पर देखा जब हुक्कू बंदर
फूले नहीं समाए।
मजा आ गया उसके संग में
हुक्कू-हुक्कू दोहराकर।