भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने नीलपंछियों को गाते सुना था / वाल्ट ह्विटमैन / दिनेश्वर प्रसाद
Kavita Kosh से
मैंने नील पँछियों को गाते सुना था
मैंने वहाँ पीली हरियाली देखी थी, जहाँ उसने अब
मजनूँ के पेड़ों को ढँक लिया था
मैंने चिरन्तन घास को ऊपर निकलते देखा था
समुद्रतट पर सूर्य का प्रकाश — मैंने जहाज़ों से सुसज्जित
दूर के नगर में फहराती हुई पताकाएँ देखी थी
मैंने जहाज़ों पर रँगों का समारोही मेला देखा था
मैं उत्सव और भोज के विषय में जानता था
— तब मैंने इससे मुँह मोड़ लिया और अज्ञात
मृत लोगों के विषय में सोचने लगा
मैं अनुल्लिखितों के विषय में, रमणीय और सुकोमल
युद्ध वीरों, युवा लोगों,
लौट कर आने वालों के विषय में सोचने लगा ।
किन्तु कहाँ थे नहीं लौट कर आने वाले ?
मैं नहीं लौटने वालों, माताओं के पुत्रों के बारे में सोचने लगा ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद